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मन और पानी

जय जिनेंद्र मन भी पानी जैसा ही है, पानी फर्श पर गिर जाए तो कहीं भी चला जाता है।  मन भी चंचल है, कभी भी कहीं भी चला जाता है। मन को हमेशा सतसंग और प्रभु-सिमरन के साथ जोडे रखना है। जैसे पानी को फ्रिज में रखने से ठंडा रहता है और आॅईस बॉक्स मे रखने से सिमट कर बर्फ में परिवर्तित हो जाता है। वैसे ही मन फ्रिज रूपी सतसंग में ठंडा और शांत रहता है और प्रभु भजन-सिमरन करने से  सिमट कर एक हो कर परमात्मा में लीन हो जाता है। अगर बर्फ को बाहर धूप में रखा तो वह पिघल कर पानी होकर इधर-उधर होकर बिखर जाता है। ठिक उसी प्रकार  हम लोग भी माया रूपी धूप में सतसंग से दूर होकर बिखर जायेगे। तो हमें हमेशा सतसंग और प्रभु भजन-सिमरन से खुद को जोड़कर रखना चाहिए ।